Friday, August 17, 2018

कौन हूँ मैं

                                                                        (1)

जीवन का आगाज हो तुम ,
या फिर हो मौत की अभिलाषा |
सत्य का आह्वान हो या
हो दौलत की व्यर्थ पिपासा ||

अपार प्रेम का सागर हो तुम ,
या फिर हो नफरत की दीवारें |
सफलता की रणभेरी हो या
हो पराजय की निर्मम लहरें ||

कौन हो तुम ?
बताओगी ..

क्यों रहती हो साथ तुम मेरे, मुझको ज़रा समझाओगी
बस एक निवेदन तुमसे है कि
हो जाओ ओझल नजरों से तुम
नहीं चाहिए साथ तुम्हारा
बस एक निवेदन तुमसे है
                     
                                                                  (2)







याद नहीं क्या वो पल तुमको?
जब लिया शपथ था हम दोनों ने

रहूंगी परछाई बन तेरी , यही कहा था मैंने उस दिन
नहीं जानती असली दुनिया, चले गए थे हँसते-हँसते

तकलीफ हुई थी उस दिन मुझको, लगा था तुम तो समझोगे
शब्दों की इस दुनिया में, भावनाएँ तुम पढ़ लोगे
अफ़सोस रहेगा जीवन भर, नहीं मैं तुमको समझा पाई

पर आज तुम शायद समझ गए हो
मेरे शब्दों के भावों को

खैर बता देती हूँ तुमको
वक़्त हूँ मैं , रहूंगी हरदम
तुम चाहो या ना चाहो
साथ चलूंगी हर सफर में तेरे
सही करोगे, गलत करोगे
हर जवाब तुमको मैं दूंगी 


कुछ भी कह लो, कुछ भी सोचो
मैं नहीं डिगने वाली
लाख कहो की दूर हो जाओ
फिर भी ना मैं जाने वाली

बस एक निवेदन है तुमसे
अगले जनम समझ जाना

कौन हूँ मैं और क्यूँ मैं हूँ